करण
तिथियों के आधे भाग को करण कहते हैं .१ करण १२ घंटे का होता हैं कुल
११ करण होते हैं जिसमे ७ चर व् ४ स्थिर करण होते हैं . विष्टि करण का नाम भद्रा है इस में सभी शुभ कार्य करना
हानि ही देता है .कृष्ण पक्ष में भद्रा
तृतीया और दशमी के उतरार्ध में . कृष्ण पक्ष की सप्तमी व् चतुर्दशी के
पूर्वाद्ध में . शुक्ल पक्ष के चतुर्थी व् एकादशी के पूर्वाद्ध में . अष्टमी व्
पूर्णमासी पूर्वाद्ध में भद्रा में सभी कार्य त्याज्य होते हैं .
क्रम करण का नाम स्वामी
चर करण
१. बव इंद्र
२. बालव ब्रह्मा
३. कौलव सूर्य
४. तैतिल सूर्य
५. गर पृथवी
६. वणिज लक्ष्मी
७. विष्टि यम
स्थिर करण
१. शकुनि कलयुग
२. चतुष्पद रूद्र
३. नाग सर्प
४. किन्स्तुम्भ वासु
सौर , बैशाख , ज्येष्ठ , मार्ग , आषाढ़ के भद्र शुभ फल
देता है .
फाल्गुन , भादों , चैत्र , सावन – इसमें कार्य का विनाश
होता है .
पौष , माघ , कार्तिक ,आश्विन – इस भद्रा में धन संचय
होता हैं.
No comments:
Post a Comment