HOLI – FESTIVAL OF COLOURS
होली रंगों का पर्व
पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है . अमीर हो चाहे गरीब सभी लोग एक दूसरे
पर रंग डालकर और गले मिलकर पुरानी बातों को भूलकर जीवन के नई राहों की ओर कदम रखते
हैं. सभी लोग दुश्मनी भूलकर यारो के यार बन जाते हैं , होली के
पर्व के पहले होलिका दहन होता है .इस दिन रात में लकड़ी के ढेर को एकत्र कर उसकी
पूजा करने के बाद होलिका दहन की जाती है .
कहा जाता है की प्राचीन काल में राजा ह्रिंरणकश्यप अपने आप को भगवान मानता था .
उसका पुत्र प्रह्लाद भगवन विष्णु पर आस्था रखता था. राजा ह्रिंरणकश्यप ने सभी को
आदेशित किया था कि मेरे अलावा किसी की पूजा न की जाए .परन्तु उसका पुत्र नहीं माना
तो उसे मारने के लिए जहर दिया गया लेकिन जहर अमृत में बदल गया . भक्त प्रह्लाद को
बहुत सारी यातनाये दी गए परन्तु प्रह्लाद का कुछ भी नहीं हुआ . अंत में प्रहलाद की
बुआ राक्ष्नी होलिका उसे लेकर एक आग के ढेर में बैठ गयी ताकि प्रह्लाद आग में जलकर
मर जाए . होलिका को आग से न जलने का वरदान था. जब आग जली मतो प्रह्लाद ने भगवन
विष्णु को पुकारा .अपने भक्त की रक्षा के लिया भगवन विष्णु ने प्रह्लाद को बचा
लिया और होलिका आग में जालकर भस्म हो गई .
उसे घटना की याद में होली का पर्व मनाया जाता है . होली का पर्व हमारे कानपुर में बहुत हर्ष के साथ मनाया जाता है .यहाँ पर
होलिका दहन के अगले दिन धुलेंडी या रंग खेलने का पर्व होता है . इसदिन सब लोग एक
दूसरे पर रंग डालते हैं. हमारी युवावस्था में कपडे फाड़ और कीचड़ वाली होली भी
कानपूर में होती थी .अब धीरे –धीरे यह प्रथा कम होती जा रही है . रंग खेलने के बाद
लोग आपस में गले मिलते है .शाम को लोगो के घरों में मिलने जाते हैं .जहाँ पर उनका
स्वागत गुझिया , आलू के पापड़ , चिप्स और विविध प्रकार के पकवानों से होता है .इस
दिन शराब और भांग भी लोगो द्वारा उपयोग में ली जाती है. यहाँ पर सात दिन तक होली
खेली जाती है. सातवे दिन गंगा नदी के किनारे गंगा मेला होता है .यह परंपरा नाना
साहब के १८५७ के संग्राम से चली आ रही है.
भारत को अंग्रेजो से मुक्ति दिलाने की याद में यह आयोजन होता रहा है. धुलेंडी के
अगले दिन परवा फिर भाई दूज का त्यौहार
मनाया जाता है .झाँसी में धुलेंडी के दिन रंग नहीं खेलते है क्यूंकि इस दिन रानी लक्ष्मीबाई के पति राजा गंगाधर
राव का देहांत हो गया था. इसलिए आज भी अगले दिन होली खेलने का रिवाज़ है झाँसी के
पास एरच में हिरन्यकश्यप की राजधानी थी .यही से ३ किलो मीटर दूर ढ़ेंकाचल पर्वत से
प्रहलाद को बेतवा नदी में फेका गया था .परन्तु प्रह्लाद का कुछ नहीं हुआ था .इसी
एरच में होलिका दहन हुआ था . हिरन्यकश्यप
को ब्रिटिश गजेटियर के अनुसार बुंदेलखंड का पहला शासक माना जाता है .
बरसाना की लठमार
होली को देखने विदेश से भी लोग आते हैं . मथुरा यानि ब्रज की होली भी सारे संसार
में प्रशिद्ध है.
होली में पूजा कैसे करें—
होलिका दहन के पहले सारे शरीर में उबटन लगा कर
उसका मैल एक पुराने कपडे में बांध ले .गन्ना , गेहूं की बाली , बताशा , गोबर के
कंडे , अबीर – गुलाल के साथ होलिका दहन स्थल में भगवन विष्णु का नाम लेकर अर्पण
करना चाहिए .फिर जलती होली की सात परिक्रमा करके वहाँ से जलती लकड़ी को घर लाकर
तापना चाहिए .जिससे सभी प्रकार के दुःख दर्द उसमे भस्म हो जाएँ
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