गोचर ग्रहों का जातक पर फल -2
मंगल
ग्रह का प्रभाव गोचर में इस प्रकार से होता है.प्रथम भाव में जब मंगल आता है .तो
रोग्दायक हो कर बवासीर ,रक्त विकार ,ज्वर ,
घाव , अग्नि से डर , ज़हर और अस्त्र से हानि
देता है.
द्वतीय
भाव में –यहाँ पर मंगल से पित ,अग्नि ,चोर से खतरा ,राज्य से हानि , कठोर वाणी के
कारण हानि , कलह और शत्रु से परेशानियाँ आती है .
तृतीय
भाव – इस भाव में मंगल के आ जाने से चोरो और किशोरों के माध्यम से धन की प्राप्ति
होती है शत्रु डर जाते हैं . तर्क शक्ति प्रबल होती है. धन , वस्त्र , धातु की
प्राप्ति होती है . प्रमुख पद मिलता है .
चतुर्थ
भाव में – यहं पर पेट के रोग ,ज्वर , रक्त विकार , शत्रु पनपते हैं .धन व् वस्तु
की कमी होने लगती है .गलत संगती से हानि होने लगती है . भूमि विवाद , माँ को कष्ट
, मन में भय , हिंसा के कारण हानि होने
लगती है .
पंचम
भाव – यहाँ पर मंगल के कारण शत्रु भय , रोग , क्रोध , पुत्र शोक , शत्रु शोक , पाप
कर्म होने लगते हैं . पल पल स्वास्थ्य गिरता रहता है .
छठा भाव
– यहाँ पर मंगल शुभ होता है . शत्रु हार जाते हैं . डर भाग जाता हैं . शांति मिलती
है. धन – धातु के लाभ से लोग जलते रह जाते हैं .
सप्तम
भाव – इस भाव में स्त्री से कलह , रोग ,पेट के रोग , नेत्र विकार होने लगते हैं .
अष्टम
भाव में – यहाँ पर धन व् सम्मान में कमी और रक्तश्राव की संभावना होती है .
नवम भाव
– यहाँ पर धन व् धातु हानि , पीड़ा , दुर्बलता , धातु क्षय , धीमी क्रियाशीलता हो
जाती हैं.
दशम भाव
– यहाँ पर मिलाजुला फल मिलता हैं,
एकादश
भाव – यहाँ मंगल शुभ होकर धन प्राप्ति ,प्रमुख पद दिलाता हैं.
द्वादश
भाव – इस भाव में धन हानि , स्त्री से कलह नेत्र वेदना होती है .
बुध का गोचर में प्रभाव –
प्रथम भाव में – इस भाव में चुगलखोरी अपशब्द , कठोर वाणी की आदत के कारण हानि होती है
.कलह बेकार की यात्रायें . और अहितकारी
वचन से हानियाँ होती हैं .
द्वीतीय
भाव में – यहाँ पर बुध अपमान दिलाने के बावजूद धन भी दिलाता है .
तृतीय
भाव – यहाँ पर शत्रु और राज्य भय दिलाता है . ये दुह्कर्म की ओर ले जाता है .यहाँ
मित्र की प्राप्ति भी करवाता है .
चतुर्थ
भाव् – यहाँ पर बुध शुभ होकर धन दिलवाता है .अपने स्वजनों की वृद्धि होती है .
पंचम
भाव – इस भाव में मन बैचैन रहता है . पुत्र व् स्त्री से कलह होती है .
छठा भाव
– यहाँ पर बुध अच्छा फल देता हैं. सौभाग्य का उदय होता है . शत्रु पराजित होते हैं
. जातक उन्नतशील होने लगता है . हर काम में जीत होने लगते हैं
सप्तम
भाव – यहं पर स्त्री से कलह होने लगती हैं .
अष्टम
भाव – यहाँ पर बुध पुत्र व् धन लाभ देता है .प्रसन्नता भी देता है .
नवम –
यहाँ पर बुध हर काम में बाधा डालता हैं .
दशम भाव
– यहाँ पर बुध लाभ प्रद हैं. शत्रुनाशक ,धन दायक ,स्त्री व् शयन सुख देता है .
एकादश
भाव में – यहाँ भी बुध लाभ देता हैं . धन , पुत्र , सुख , मित्र ,वाहन , मृदु वाणी प्रदान करता है .
द्वादश
भाव- यहाँ पर रोग ,पराजय और अपमान देता है
गुरु का गोचर प्रभाव- प्रथम भाव में =======
इस भाव
में धन नाश ,पदावनति , वृद्धि का नाश , विवाद ,स्थान परिवर्तन दिलाता हैं .द्वितीय भाव में – यहाँ पर धन व्
विलासता भरा जीवन दिलाता है .
तृतीय
भाव में – यहाँ पर काम में बाधा और स्थान परिवर्तन करता है .
चतुर्थ
भाव में – यहाँ पर कलह , चिंता पीड़ा दिलाता है .
पंचम
भाव – यहाँ पर गुरु शुभ होता है .पुत्र , वहां ,पशु सुख , घर ,स्त्री , सुंदर वस्त्र
आभूषण , की प्राप्ति करवाता हैं .
छथा भाव
में – यहाँ पर दुःख और पत्नी से अनबन होती है.
सप्तम
भाव – सैय्या , रति सुख , धन , सुरुचि भोजन , उपहार , वहां .,वाणी , उत्तम वृद्धि
करता हैं .
अष्टम
भाव – यहाँ बंधन ,व्याधि , पीड़ा , ताप ,शोक , यात्रा कष्ट , मृत्युतुल्य परशानियाँ
देता है .
नवम भाव
में – कुशलता ,प्रमुख पद , पुत्र की सफलता , धन व् भूमि लाभ , स्त्री की प्राप्ति
होती हैं .
दशम भाव में- स्थान परिवर्तन में हानि , रोग ,धन
हानि
एकादश
भाव – यहाँ सुभ होता हैं . धन ,आरोग्य और अच्छा स्थान दिलवाता है .
द्वादश
भाव में – यहाँ पर मार्ग भ्रम पैदा करता है .
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