गोचर ग्रहों का जातक पर फल – 3
गोचर
शुक्र का प्रथम भाव में प्रभाव –जब शुक्र यहाँ पर आता है तब सुख ,आनंद ,वस्त्र ,
फूलो से प्यार , विलासी जीवन ,सुंदर स्थानों का भ्रमण ,सुगन्धित पदार्थ पसंद आते है .विवाहिक जीवन के
लाभ प्राप्त होते हैं .
द्वीतीय
भाव में – यहाँ पर शुक्र संतान , धन , धान्य , राज्य से लाभ , स्त्री के प्रति
आकर्षण और परिवार के प्रति हितकारी काम करवाता हैं.
तृतीय
भाव – इस जगह प्रभुता ,धन ,समागम ,सम्मान ,शास्त्र , वस्त्र का लाभ दिलवाता
हैं .यहाँ पर नए स्थान की प्राप्ति और शत्रु का नाश करवाता हैं .
चतुर्थ
भाव –इस भाव में मित्र लाभ और शक्ति की प्राप्ति करवाता हैं .
पंचम
भाव – इस भाव में गुरु से लाभ ,संतुष्ट जीवन , मित्र –पुत्र –धन की प्राप्ति
करवाता है . इस भाव में शुक्र होने से भाई का लाभ भी मिलता है.
छठा
भाव –इस भाव में शुक्र रोग , ज्वर ,और असम्मान दिलवाता है .
सप्तम
भाव – इसमें सम्बन्धियों को नाश करवाता हैं .
अष्टम
भाव – इस भाव में शुक्र भवन , परिवार सुख , स्त्री की प्राप्ति करवाता है .
नवम
भाव- इसमें धर्म ,स्त्री ,धन की प्राप्ति होती हैं .आभूषण व् वस्त्र की प्राप्ति
भी होती है .
दशम
भाव – इसमें अपमान और कलह मिलती है.
एकादश
भाव – इसमें मित्र ,धन ,अन्न ,प्रशाधन सामग्री मिलती है .
द्वादश
भाव – इसमें धन के मार्ग बनते हिया परन्तु वस्त्र लाभ स्थायी नहीं होता हैं .
शनि
की गोचर दशा
प्रथम
भाव – इस भाव में अग्नि और विष का डर होता
है. बंधुओ से विवाद , वियोग , परदेश गमन , उदासी ,शरीर को हानि , धन हानि ,पुत्र
को हानि , फालतू घूमना आदि परेशानी आती है .
द्वितीय
भाव – इस भाव में धन का नाश और रूप का सुख नाश की ओर जाता हैं .
तृतीय
भाव – इस भाव में शनि शुभ होता है .धन ,परिवार ,नौकर ,वाहन ,पशु ,भवन ,सुख ,ऐश्वर्य
की प्राप्ति होती है .सभी शत्रु हार मान जाते हैं .
चतुर्थ
भाव –इस भाव में मित्र ,धन ,पुत्र ,स्त्री से वियोग करवाता हैं .मन में गलत विचार
बनने लगते हैं .जो हानि देते हैं .
पंचम
भाव – इस भाव में शनि कलह करवाता है जिसके कारण स्त्री और पुत्र से हानि होती हैं
.
छठा भाव – ये शनि का लाभकारी स्थान हैं. शत्रु व्
रोग पराजित होते हैं .सांसारिक सुख मिलता है .
सप्तम
भाव – कई यात्रायें करनी होती हैं . स्त्री – पुत्र से विमुक्त होना पड़ता हैं .
अष्टम
भाव – इसमें कलह व् दूरियां पनपती हैं.
नवम
भाव - यहाँ पर शनि बैर , बंधन ,हानि और
हृदय रोग देता हैं .
दशम
भाव – इस भाव में कार्य की प्राप्ति , रोज़गार , अर्थ हानि , विद्या व् यश में कमी
आती हैं
एकादश
भाव – इसमें परस्त्री व् परधन की प्राप्ति होई हैं .
द्वादश
भाव – इसमें शोक व् शारीरिक परेशानी आती हैं .
शनि
की २,१,१२ भावो के गोचर को साढ़ेसाती और ४ ,८ भावो के गोचर को ढ़ैया कहते हैं .
शुभ
दशा में गोचर का फल अधिक शुभ होता हैं .अशुभ गोचर का फल परेशान करता हैं .इस उपाय
द्वारा शांत करवाना चाहिए .अशुभ दस काल मे शुभ फल कम मिलता हैं .अशुभ फल ज्यादा
होता हैं
.
पूजा
कैसे करें – जब
सूर्य और मंगल अशुभ हो तो लाल फूल , लाल चन्दन ,केसर , रोली , सुगन्धित पदार्थ से पूजा करनी चाहिए . सूर्य को जलदान
करना चाहिए .शुक्र की पूजा सफ़ेद फूल, व्
इत्र के द्वारा दुर्गा जी की पूजा करनी
चाहिए . शनि की पूजा काले फूल ,नीले फूल
व् काली वस्तु का दान करके शनि देव की
पूजा करनी चाहिए . गुरु हेतु पीले फूल से विष्णु देव की पूजा करनी चाहिए .बुध हेतु
दूर्वा घास को गाय को खिलाएं .