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Tuesday, 25 June 2013

bhagyam phalam sarvada

भाग्यम फलम् सर्वदा न तो विद्या न तो धनं 

                                                                       लग्न भाव 
कुंडली मानव जीवन का आकाशीय प्रतिरूप होता है.जब जातक का जनम होता है उस समय आकाश में जो ग्रह विद्यमान होते है उसको कुंडली में दर्शाया जाता है . जातक के जनम समय पूर्व दिशा में जो राशि होती है वह जातक की लग्न राशि कहलाती है . इस राशि को प्रथम भाव में रखा जाता है . जातक का चंद्रमा जिस राशि में होता है वह राशि जातक की चन्द्र राशि कहलाती है. गोचर इसी के अनुरूप बनाया जाता है. प्रथम भाव से जातक का शरीर का रंग रूप , आकृति , कद ,यश , चरित्र , आदि को देखा जाता है. आकृति के बारे में विचार  करने हेतु निम्न नियमो को देखना चाहिए -
 १. लग्न में जिस प्रकार की राशि व् ग्रह होगा जातक उसी के अनुरूप होगा .
२ . लग्न में कौन सी राशि है 
३. उस राशि में कौन स ग्रह बैठा है .
४. कौन सा ग्रह लग्नेश है .वह कहाँ पर है. 
५. लग्नेश के साथ किन ग॒हों की युति है . 
६. लग्न पर किस की द्रष्टि है . 
७. लग्नेश त्रिक में तो नहीं है. 
८. गुरु लग्नस्थ है व् द्रष्ट है.
९. गुरु कहाँ पर है   
 10. यदि लग्न में जल राशि व् जल ग्रह होगा तो वह जातक मोटा होगा . कर्क , वृश्चिक और मीन जल राशी है .चन्द्र , बुध , गुरु और शुक्र जल ग्रह हैं .

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