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Tuesday 11 June 2013

shivkhori ( jammu & kashmir) yatra

                       शिव खोरी यात्रा
वैष्णो देवी यात्रा के बाद वापस कटरा आकर दसरे होटल में ७ .जून २०१३ को स्टे किया . फिर ८ जून को वेन्जेर कार से लगभग ८४ किलोमीटर दूर शिव खोरी की यात्रा शुरू की . रास्ते में वैष्णो देवी  की १२ साल तक आराधना करने वाले बाबा जित्तो  के मंदिर के दर्शन किये  यहाँ पर पहाड़ से नीचे गिरने वाली जल धारायें का पवित्र जल पीने से स्किन रोग से मुक्ति मिलती है .यहाँ की जल धारा में लोग नहाते हैं , लोग डिब्बो में यहाँ का जल ले जाकर पीते हैं. यहाँ पर कई मंदिर हैं, इसके बाद नौचंडी मब्दिर में दर्शन करने गए . यहाँ की शिव गुफा में शिवजी के दर्शन करने के बाद दुर्गा जी की गुफा में रेंगकर प्रवेश करना पड़ा . इसके बाहर आने पर सामने पहाड़ के बीच बहती नदी में तैरती मछलियां अति सुंदर लगी .इनको हमलोगों ने आटे की गोलियां खिलायीं . फिर रास्ते में चिनाब नदी के किनारे एक ढ़ाबे में पराठा व् कोल्ड ड्रिंक पी . चिनाब नदी के किनारे  यही पर हिना पिक्चर शूट हुए थी .इसके बाद पहाड़ी रास्ते से होते हुए रियासी जिले के रान्सू गाँव पहुचें . यही से ३.५ किलो मीटर उपर पहाडों में शिव जी की गुफा शिव खोरी है.
       कहा जाता है कि भस्मासुर से बचने के लिए शिव जी ने अपने त्रिशूल से यह गुफा बनायीं थी . फिर  भगवान विष्णु  ने मोहनी बनकर भस्मासुर को नाच नचाकर मार दिया था. आज भी गुफा की छत पर सुदर्शन चक्र और त्रिशूल के निशान हैं.नीचे बेस कैंप से  है की यात्रा पर्ची लेने के बाद पैदल ही गुफा तक गए . यह पूरा स्थान पहाड़ों से घिरी वादी में हैं . यह गुफा 200 मीटर लम्बी , प्रारंभ में  ३-४ मीटर चौड़ी है बीच में इतनी संकरी हो गयी रेंगकर और गुफा से चिपककर अंदर जाना पड़ा ,१५० मीटर बाद प्राकृतिक रूप में बहा शिव पिंड है , इसके उपर कई सारी जलधारायै गिर रही है जैसी की भागरथी अवतरित हो रही हो .शिव लिंग के पास पत्थर में पारवती , गणेश जी पञ्च सिर वाले  और कार्तिकेय भगवान के पिंड दिखायी देते हैं.छत पर छह फन वाले शेषनाग स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं .यहाँ पर सुदर्शन चक्र व् त्रिशूल भी प्राकर्तिक रूप से हैं . साथ में हनुमान जी भी पिंड रूप में हैं .इस प्रकार से यह स्थान प्राकर्तिक व् धार्मिक रूप से देखने योग्य हैं. यहाँ तक कटरा से ८४ किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है . पूरे रास्ते में वादियां और पहाडों के द्रश्य अवर्णीनीय हैं.



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